
गुरू अर्जुन देव जी कहते है: लख चौरासी जोन सबाईं।। मानस कऊ प्रभ दी वडयाई।। इस पउड़ी ते जो नर चुके, सो आइ जाइ दुख पाईदा।। (आदि ग्रंथ पृष्ठ स १०७५)
गुरू साहिब चेतावनी दे रहे है कि जो लोग प्रभु की अपार दया से मिले मनुष्य जन्म के अमूल्य अवसर को इन्द्रियों के भोगों, विषय विकारों और दुनिया के झूठे धंधों में गवा देते है, वे अनंत काल तक चौरासी की चक्की में पिसते रहते है।
ऋषियों मुनियों और संतो महात्माओं ने सम्पूर्ण सृष्टि को पांच तत्वों, चार खानियो और चौरासी लाख योनियों में बांटा है – कई लाख किस्म के फल, फूल, पोेधे और वृक्ष, कई लाख किस्म के कीड़े मकोड़े, कई लाख किस्म के पक्षी, कई लाख किस्म के पानी के जीव और कई लाख किस्म के पशु, भूत प्रेत, देवी देवता आदि।
मनुष्य किए हुए कर्मो का फल भोगने के लिए चौरासी में भटकता है। मनुष्य कमर योनि है। देवी देवताओं सहित बाकी सब भोग योनिया है। देवी देवता कोन है? वे इंसान जिन्होंने मनुष्य शरीर में रहते हुए अति श्रेष्ठ कर्म किए, वे स्वर्गों में देवी देवता बनकर अपने कर्मो का फल भोग रहे है। जब वह फल समाप्त होगा, तो उन्हें फिर मातलोक यानी इस संसार में जन्म लेना पड़ता है।
संतो महात्माओं ने समझाया है कि कर्म, चौरासी से मुक्ति का साधन नहीं। वास्तव में कर्म ही चौरासी के बंधन का मूल कारण है। नेक कर्म, बुरे कर्मो का नाश नहीं कर सकते। पुण्य पापो के और पाप, पापो के लेखे में जमा हो जाते है और दोनों तरह के कर्म जीव को चौरासी से बांधकर रखते है। पुण्य और पाप इकट्ठे होते है, तो परमेश्वर की अपार दया से मनुष्य जन्म का सुनहरी अवसर मिलता है।
मनुष्य कर्म अधिक करता है और भोगता कम है। इसीलिए वह पुनर्जन्म के बंधन में बंध जाता है।
मनुष्य जन्म को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है, क्योंकि केवल मनुष्य जन्म में ही भले बुरे और उचित अनुचित में भेद करने, अपनी दशा सुधार सकने और प्रभु भक्ति द्वारा अपने सब कर्मो का नाश करके चौरासी के बंधन से मुक्त होने की शक्ति रखी है। मनुष्य जन्म का वास्तविक लक्ष्य ही प्रभु भक्ति द्वारा प्रभु से मिलाप करके चौरासी के बंधन से मुक्त होना है।
स्वामी जी महाराज के वचन है: जो चौरासी छूटन चावे। तो गुरमुख सेवा चित लावे।। और काम सब देहि बहाई। शब्द गुरु की करे कमाई।। (सारबचन संग्रह, 8:1:29-30)