
संतान, संपत्ति, शोभा, आदर आदि कई चीजों के लिए हमारे हाथ प्रार्थना में उठते रहते है, पर इस दिशा में प्राप्तियों का नतीजा अंत में दुखो, क्लेशों में निकलता है: “देदा दे लेदे थक पाहि” (आदि ग्रंथ पृष्ठ स २) अगर दातार प्रभु से कुछ मांगने की कामना हो तो और सब कुछ छोड़कर एक नाम ही मांगना चाहिए, क्योंकि नाम के मिलने से सब कुछ मिल जाता है, हर प्रकार की भूख मिट जाती है:
गुरू अर्जुन देव जी फरमाते है : विण तुध होर जे मंगण सिर दुखा कै दुख।। देह नाम संतोखिया, उतरे मन की भुख।। (आदि ग्रंथ पृष्ठ स ९५८)
धर्म पुस्तकों ने अमृत की बहुत ही बड़ाई की है, खासकर इसीलिए कि उसे पीने वाला मरता नहीं, जब कि नाम एक साधारण मनुष्य को देवता, खुद प्रभु बना देने का सामर्थ्य रखता है, और यह नाम के अनेक गुणों में से एक है। नाम को साधारण नामों से अलग करने के लिए अमृत नाम कहा जाता है क्योंकि उसके योग्य, उस पर पूरी तरह फ़बने वाला कोई विशेषण आज तक किसी को सूझा ही नहीं।