
“यदि परमात्मा कि दया न हो तो हमे उससे बिछुड़ने का दुख महसूस ही नहीं होता और न ही वापस अपने असली घर जाने की इच्छा होती है। उस कुल मालिक की कृपा के बिना न तो हमारा सतगुरु से मिलाप हो सकता है और न ही हम उसके बताएं हुए मार्ग पर चल सकते है।” – महाराज चरन सिंह
अनंत जन्मों के शुभ कर्मो और परमात्मा की दया मेहर द्वारा हमे सतगुरु की संगति प्राप्त होती है। हमारे जन्म लेने के समय से सतगुरु हमारे अंग संग रहते है। सतगुरु हमारे सच्चे साथी है। जब भी हम पर दुख और निराशा छा जाती और हमारी परिस्थिति बद से बदतर हो जाती है, सतगुरू हमारे साथ रहते है। सतगुरु इस प्रतीक्षा में है कि कब हमे इस भ्रम का ज्ञान हो जिसमें हम जिंदगी बिता रहे है।
“सतगुरु केवल शिष्य के जीवन में ही उसका मार्ग दर्शन नहीं करता, बल्कि शिष्य की मृत्यु के समय और मृत्यु के बाद भी उसके साथ रहता है” – महाराज चरन सिंह
देहधारी सतगुरू हमे परमात्मा रूपी परम सत्य के साथ जोड़ने वाली कड़ी है। संत हमे बार बार इस बात पर जोर देते है कि सबसे पहले यह निश्चिंत कर लेना जरूरी है कि संत मत के उपदेश हमारी समझ में आ गए है, यह उपदेश तर्क की कसौटी पर खरे उतरते है और हमे इसमें सच्चाई नजर आती है। ऐसा नहीं करेंगे तो न ही इस उपदेश के साथ और न ही सतगुरु के साथ पूरा न्याय कर सकेगे। सभी शंकाओं का समाधान हो जाने पर हमे पूरा भरोसा हो जायेगा कि यह मार्ग भी सही है और इस मार्ग पर ऑगुवाई करनेवाला गुरु भी पूर्ण है। पूरा विश्वास होने पर हमे दृढ़ता से अपना भजन सिमरन निरंतर करते रहने में सहायता मिलेगी और भजन सिमरन में निरंतरता से हमे संतुलन, शांति और स्थिरता प्राप्त होगी जो हमारी रूहानी उन्नति में सहायक सिद्ध होगी।
हमे अपने अंदर सतगुरु के उपदेश का अंत तक पालन करने की दृढ़ता और धेर्य पैदा करना है और इस बात का ध्यान रखना है कि महत्व उनके व्यक्तित्व से अधिक उनके उपदेश की सत्यता का है। इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि सतगुरु देह स्वरूप में हम इतना न खो जाए कि यह भी भूल जाएं कि हमारा वास्तविक सतगुरु नाम या शब्द रूप है।