नरकों और स्वर्गों को जला दो

सुरग मुकति बैकुंठ सभ बांछह नित आसा आस करीजै । हर दरसन के जन मुकति न मांगह मिल दरसन त्रिपत मन धीजै।। गुरु रामदास एक दिन बसरा की महात्मा राबिया बसरी फूट – फूटकर रो रही थी , मानो उसका हृदय फट रहा हो । उसको दुःख से व्याकुल देखकर उसके पड़ोसी उसके चारों ओरContinue reading “नरकों और स्वर्गों को जला दो”

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