अगर कोई आदमी इस दुनिया में खुशी-खुशी मरता है तो केवल शब्द का अभ्यासी ही बाकी कुल दुनिया बादशाह से लेकर गरीब तक रोते हुए ही जाते हैं।
ढिलवाँ गाँव का जिक्र है। एक स्त्री शरीर छोड़ने लगी तो अपने घर वालों को बुलाकर कहा, ‘सतगुरु आ गए हैं, अब मेरी तैयारी है। उम्मीद है कि आप मेरे जाने के बाद रोओगे नहीं क्योंकि मैं अपने सच्चे धाम को जा रही हूँ। इससे ज्यादा और खुशी की बात क्या हो सकती है कि सतगुरु ख़ुद साथ ले जा रहे हैं। ‘ उसके बेटे कहने लगे कि हमारा क्या होगा ?तो वह शांति से बोली, तुम अपना आप खुद सँभालो।
_जब मौत के वक्त गुरु सामने आ जाए तो और क्या चाहिए ?अगर आप टाट का कोट उतारकर मखमल का कोट पहन ले तो आपको क्या घाटा है अगर आप इस गंदे देश से निकलकर कुल मालिक के देश में चले जाएं तो आपको और क्या चाहिए?
इसीलिए अगर जीते जी कुछ करना है तो पूर्ण गुरु / वक्त के गुरु के कहे अनुसार जीते जी मरने के तैयारी कर लो। परमात्मा को याद कर लो । संत महात्मा कहते है कि जिसने जीते जी रिश्ता जोड़ लिया। वो ही मौत के वक्त परमात्मा को पहचान पाता है । बाकि किसी को पता ही चलता कि कोन आया, कहा ले जायेगा ।
Bahut hi khubsurat soch hai yeh. Parmatma se prarthna hai ki hamare vicharon mein sadbudhi pradan karein toh hum bhi khushi khushi mrityu ka swagat karein.
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